Sambhavami Yuge Yuge-1 (Hindi Novel)

सम्भवामि युगे युगे-1

Nonfiction, Reference & Language, Foreign Languages, Indic & South Asian Languages, Fiction & Literature, Historical
Cover of the book Sambhavami Yuge Yuge-1 (Hindi Novel) by Guru Dutt, गुरु दत्त, Bhartiya Sahitya Inc.
View on Amazon View on AbeBooks View on Kobo View on B.Depository View on eBay View on Walmart
Author: Guru Dutt, गुरु दत्त ISBN: 9781613011928
Publisher: Bhartiya Sahitya Inc. Publication: February 1, 2014
Imprint: Language: Hindi
Author: Guru Dutt, गुरु दत्त
ISBN: 9781613011928
Publisher: Bhartiya Sahitya Inc.
Publication: February 1, 2014
Imprint:
Language: Hindi
मैं तो महाभारत के दूसरे भाग को पढ़ने के लिए उत्सुक था, अतः उसी रात वह पुलिन्दा निकाल पढ़ने लगा। उसमें लिखा था मैंने इस कथा के पूर्वांश में लिखा था कि पांडु-पुत्रों को धृतराष्ट्र के पुत्रों के समान मान और स्थान मिल जाने पर, मैं निश्चिन्त हो गया था। मैंने समझा कि कुरुवंशियों का विनाश, जिसका इन्द्र ने संकेत किया था, अब नहीं होगा। अतः मैं अपना जीवन सुखमय ढंग से व्यतीत करने लगा। उर्मिला मेरे पास रहती थी। मेरे सब बच्चे, मोदमंती का पुत्र नीलाक्ष, नीललोचना के तीनों बच्चे और उर्मिला का पुत्र श्रीकांत, जो वह देवलोक से लायी थी और उसकी मुझसे लड़की लोमा, सब उर्मिला की देख-रेख में मेरे पास ही रहते थे। राज्य में मेरा कार्य केवल धृतराष्ट्र की दरबारदारी करना रह गया था। वे मुझसे देश-देशान्तर के वृत्तान्त सुना करते थे। कभी मैं किसी देश के विषय में कहता कि मैंने वह नहीं देखा, तो वहां मेरे भ्रमण का प्रबन्ध कर दिया जाता। मैं उस देश में जाता। वहां के लोगों के रहन-सहन, सुख-दुःख और रीति-रिवाज तथा वहां के दर्शनीय स्थान देखकर आता और फिर वहां की बात अति रोचक भाषा में उनको सुनाता।
View on Amazon View on AbeBooks View on Kobo View on B.Depository View on eBay View on Walmart
मैं तो महाभारत के दूसरे भाग को पढ़ने के लिए उत्सुक था, अतः उसी रात वह पुलिन्दा निकाल पढ़ने लगा। उसमें लिखा था मैंने इस कथा के पूर्वांश में लिखा था कि पांडु-पुत्रों को धृतराष्ट्र के पुत्रों के समान मान और स्थान मिल जाने पर, मैं निश्चिन्त हो गया था। मैंने समझा कि कुरुवंशियों का विनाश, जिसका इन्द्र ने संकेत किया था, अब नहीं होगा। अतः मैं अपना जीवन सुखमय ढंग से व्यतीत करने लगा। उर्मिला मेरे पास रहती थी। मेरे सब बच्चे, मोदमंती का पुत्र नीलाक्ष, नीललोचना के तीनों बच्चे और उर्मिला का पुत्र श्रीकांत, जो वह देवलोक से लायी थी और उसकी मुझसे लड़की लोमा, सब उर्मिला की देख-रेख में मेरे पास ही रहते थे। राज्य में मेरा कार्य केवल धृतराष्ट्र की दरबारदारी करना रह गया था। वे मुझसे देश-देशान्तर के वृत्तान्त सुना करते थे। कभी मैं किसी देश के विषय में कहता कि मैंने वह नहीं देखा, तो वहां मेरे भ्रमण का प्रबन्ध कर दिया जाता। मैं उस देश में जाता। वहां के लोगों के रहन-सहन, सुख-दुःख और रीति-रिवाज तथा वहां के दर्शनीय स्थान देखकर आता और फिर वहां की बात अति रोचक भाषा में उनको सुनाता।

More books from Bhartiya Sahitya Inc.

Cover of the book Premchand Ki Kahaniyan-17 by Guru Dutt, गुरु दत्त
Cover of the book Sapt Saroj (Hindi Stories) by Guru Dutt, गुरु दत्त
Cover of the book Urvashi (Hindi Epic) by Guru Dutt, गुरु दत्त
Cover of the book Premchand Ki Kahaniyan-24 by Guru Dutt, गुरु दत्त
Cover of the book Hori (Hindi Drama) by Guru Dutt, गुरु दत्त
Cover of the book Premchand Ki Kahaniyan-01 by Guru Dutt, गुरु दत्त
Cover of the book Haathi Ke Daant (Hindi Novel) by Guru Dutt, गुरु दत्त
Cover of the book Aaj Abhi (Hindi Drama) by Guru Dutt, गुरु दत्त
Cover of the book Guru Nanak Ki Vani (Hindi self-help) by Guru Dutt, गुरु दत्त
Cover of the book Kripa (Hindi Rligious) by Guru Dutt, गुरु दत्त
Cover of the book Krodh (Hindi Religious) by Guru Dutt, गुरु दत्त
Cover of the book Nirog Jeevan (Hindi self-help) by Guru Dutt, गुरु दत्त
Cover of the book Dharti Aur Dhan (Hindi Novel) by Guru Dutt, गुरु दत्त
Cover of the book Gyanyog Par Pravchan (Hindi Self-help) by Guru Dutt, गुरु दत्त
Cover of the book Aasha-Nirasha (Hindi Novel) by Guru Dutt, गुरु दत्त
We use our own "cookies" and third party cookies to improve services and to see statistical information. By using this website, you agree to our Privacy Policy