Gupt Dhan-2 (Hindi Stories)

गुप्त धन - 2

Nonfiction, Health & Well Being, Self Help, Self Improvement, Stress Management, Fiction & Literature
Cover of the book Gupt Dhan-2 (Hindi Stories) by Munshi Premchand, मुंशी प्रेमचन्द, Bhartiya Sahitya Inc.
View on Amazon View on AbeBooks View on Kobo View on B.Depository View on eBay View on Walmart
Author: Munshi Premchand, मुंशी प्रेमचन्द ISBN: 9781613011591
Publisher: Bhartiya Sahitya Inc. Publication: December 10, 2011
Imprint: Language: Hindi
Author: Munshi Premchand, मुंशी प्रेमचन्द
ISBN: 9781613011591
Publisher: Bhartiya Sahitya Inc.
Publication: December 10, 2011
Imprint:
Language: Hindi
एक रोज़ शाम के वक़्त मैं अपने कमरे में पलंग पर पड़ी एक किस्सा पढ़ रही थी, तभी अचानक एक सुन्दर स्त्री मेरे कमरे में आयी। ऐसा मालूम हूआ कि जैसे कमरा जगमगा उठा। रुप की ज्योति ने दरो-दीवार को रोशान कर दिया। गोया अभी सफ़ेदी हुई है। उसकी अलंकृत शोभा, उसका खिला हुआ, फूल जैसा लुभावना चेहरा, उसकी नशीली मिठास, किसकी तारीफ़ करुँ। मुझ पर एक रोब-सा छा गया। मेरा रुप का घमंड धूल में मिल गया है। मैं आश्चर्य में थी कि यह कौन रमणी है और यहाँ क्योंकर आयी। बेअख़्तियार उठी कि उससे मिलूँ और पूछूँ कि सईद भी मुस्कराता हुआ कमरे में आया। मैं समझ गयी कि यह रमणी उसकी प्रेमिका है। मेरा गर्व जाग उठा। मैं उठी ज़रुर पर शान से गर्दन उठाए हुए आँखों में हुस्न के रौब की जगह घृणा का भाव आ बैठा। मेरी आँखों में अब वह रमणी रुप की देवी नहीं डसने वाली नागिन थी। मैं फिर चारपाई पर बैठ गई और किताब खोलकर सामने रख ली- वह रमणी एक क्षण तक खड़ी मेरी तस्वीरों को देखती रही तब कमरे से निकली चलते वक़्त उसने एक बार मेरी तरफ़ देखा उसकी आँखों से अंगारे निकल रहे थे। जिनकी किरणों में हिंस्र प्रतिशोध की लाली झलक रही थी। मेरे दिल में सवाल पैदा हुआ- सईद इसे यहाँ क्यों लाया ? क्या मेरा घमण्ड तोड़ने के लिए ?
View on Amazon View on AbeBooks View on Kobo View on B.Depository View on eBay View on Walmart
एक रोज़ शाम के वक़्त मैं अपने कमरे में पलंग पर पड़ी एक किस्सा पढ़ रही थी, तभी अचानक एक सुन्दर स्त्री मेरे कमरे में आयी। ऐसा मालूम हूआ कि जैसे कमरा जगमगा उठा। रुप की ज्योति ने दरो-दीवार को रोशान कर दिया। गोया अभी सफ़ेदी हुई है। उसकी अलंकृत शोभा, उसका खिला हुआ, फूल जैसा लुभावना चेहरा, उसकी नशीली मिठास, किसकी तारीफ़ करुँ। मुझ पर एक रोब-सा छा गया। मेरा रुप का घमंड धूल में मिल गया है। मैं आश्चर्य में थी कि यह कौन रमणी है और यहाँ क्योंकर आयी। बेअख़्तियार उठी कि उससे मिलूँ और पूछूँ कि सईद भी मुस्कराता हुआ कमरे में आया। मैं समझ गयी कि यह रमणी उसकी प्रेमिका है। मेरा गर्व जाग उठा। मैं उठी ज़रुर पर शान से गर्दन उठाए हुए आँखों में हुस्न के रौब की जगह घृणा का भाव आ बैठा। मेरी आँखों में अब वह रमणी रुप की देवी नहीं डसने वाली नागिन थी। मैं फिर चारपाई पर बैठ गई और किताब खोलकर सामने रख ली- वह रमणी एक क्षण तक खड़ी मेरी तस्वीरों को देखती रही तब कमरे से निकली चलते वक़्त उसने एक बार मेरी तरफ़ देखा उसकी आँखों से अंगारे निकल रहे थे। जिनकी किरणों में हिंस्र प्रतिशोध की लाली झलक रही थी। मेरे दिल में सवाल पैदा हुआ- सईद इसे यहाँ क्यों लाया ? क्या मेरा घमण्ड तोड़ने के लिए ?

More books from Bhartiya Sahitya Inc.

Cover of the book Mulla Nasiruddin Ke Chutkule (Hindi Jokes) by Munshi Premchand, मुंशी प्रेमचन्द
Cover of the book Naacho Jivan Hai Naach (Hindi wisdom bites) by Munshi Premchand, मुंशी प्रेमचन्द
Cover of the book Chandrakanta by Munshi Premchand, मुंशी प्रेमचन्द
Cover of the book Chandrashekhar Azad (Hindi Novel) by Munshi Premchand, मुंशी प्रेमचन्द
Cover of the book Waqt Ki Aawaj (Hindi Gazal) by Munshi Premchand, मुंशी प्रेमचन्द
Cover of the book Premchand Ki Kahaniyan-05 by Munshi Premchand, मुंशी प्रेमचन्द
Cover of the book Akash Kavach by Munshi Premchand, मुंशी प्रेमचन्द
Cover of the book Rashmirathi (Hindi Epic) by Munshi Premchand, मुंशी प्रेमचन्द
Cover of the book Isha Masih Ki Vani (Hindi Wisdom-bites) by Munshi Premchand, मुंशी प्रेमचन्द
Cover of the book Premchand Ki Kahaniyan-13 by Munshi Premchand, मुंशी प्रेमचन्द
Cover of the book Bhagwan Mahavir Ki Vani (Hindi Wisdom Bites) by Munshi Premchand, मुंशी प्रेमचन्द
Cover of the book Gulp Samuchchaya (Hindi Stories) by Munshi Premchand, मुंशी प्रेमचन्द
Cover of the book Chandrakanta Santati-1 by Munshi Premchand, मुंशी प्रेमचन्द
Cover of the book Aatmatatwa (Hindi Self-help) by Munshi Premchand, मुंशी प्रेमचन्द
Cover of the book Premchand Ki Kahaniyan-04 by Munshi Premchand, मुंशी प्रेमचन्द
We use our own "cookies" and third party cookies to improve services and to see statistical information. By using this website, you agree to our Privacy Policy